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12 फ़र॰ 2015

सदमा तो है मुझे भी



सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं
लेकिन ये सोचता हूँ कि अब तेरा क्या हूँ मैं
 

बिखरा पडा है तेरे ही घर में तेरा वजूद
बेकार महफिलों में तुझे ढूंढता हूँ मैं
 

खुदकशी के जुर्म का करता हूँ ऐतराफ़
अपने बदन की कब्र में कबसे गड़ा हूँ मैं
 

किस-किसका नाम लू ज़बान पर की तेरे साथ
हर रोज़ एक शख्स नया देखता हूँ मैं
 

ना जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूँ मैं
 

ले मेरे तजुर्बों से सबक ऐ मेरे रकीब
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ मैं
 

जागा हुआ ज़मीर वो आईना है 'क़तील'
सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूँ मैं

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gulam mohd
9670638670
gulam9670@gmail.com

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