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12 जुल॰ 2013

क्या आप मोटापे से परेशान हैं ?

हम क्या खाते हैं, कितना खाते हैं और किस समय खाते हैं 
तथा इसका शरीर पर क्या असर पड़ता है, 
यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे जीन किस तरह के हैं।
 वजन कम करने की कोशिश करने वाले 
हर तीसरे व्यक्ति के दिमाग में यह ख्याल आता है कि 
 हम इतना कम खाते हैं, फिर भी वजन कम नहीं होता। 
 वजन कम करने की यह सारी कसरत 
जेनेटिक गुणवत्ता पर निर्भर करती है। 
 अपने जीन को समझना कितना जरूरी है, 
बता रही हैं निशि भाट
दुबला और छरहरा हर कोई रहना चाहता है, 

 पर बीते कुछ साल से शहरी ही नहीं, 
 गांवों की आबादी में भी मोटापे की समस्या बढ़ती नजर आ रही है। 
 वजन कम करने की लाख कोशिश के बावजूद केवल 
 दस प्रतिशत लोग ही स्वस्थ रह कर 
 अपना वजन घटाने में कामयाब हो पाते हैं। 
 आहार विशेषज्ञ मानते हैं कि 
लड़कियां वजन कम करने की कोशिश में 
ऐसे पौष्टिक आहार से भी तौबा करने लगती हैं, 
 जो उनके एस्ट्रोजन हार्मोन्स के लिए जरूरी हैं। 
 हाल ही में अधिक जिम और वजन कम करने की कसरत में 
बीमार पड़ी कैटरीना कैफ को दो हफ्ते के लिए
 बेड रेस्ट की सलाह दी गई। 
 यह उदाहरण मात्र है, पर यह भी सही है कि
  केवल कसरत करके वजन कम नहीं किया जा सकता। 
 दूसरी तरफ रोजमर्रा के काम में खर्च होने वाली जरूरी कैलोरी,
  वसा और काबरेहाइड्रेट को यदि खाने में शामिल न किया जाए 
 तो इससे सेहत पर दूरगामी असर होता है।
क्या आप हैं डीएनए फिट

हम क्या, कितना और किस समय खाते हैं 

 और इसका शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है,
  यह सब हमारे जीन पर निर्भर करता है। 
 वजन कम करने की कोशिश करने वाले 
हर तीसरे व्यक्ति के दिमाग में यह ख्याल आता है कि 
हम इतना कम खाते हैं,
  फिर भी वजन कम नहीं होता, 
जबकि कुछ लोग दिन भर खाते रहते हैं, 
फिर भी उनका वजन नहीं बढ़ता। 
 वजन कम करने की यह सारी कसरत 
 जेनेटिक गुणवत्ता पर निर्भर करती है।
  वजन कम करने के कार्यक्रम लेकर आने वाली 
 कुछ बड़ी कंपनियों ने हाल ही में डीएनए फिट 
 या जेनेटिक काउंसलिंग की विचारधारा को 
 मोटापा कम करने में शामिल किया है। 
 इसके पीछे एक ठोस आधार भी है।
  विटामिन ए, बी, बी-12 सी फॉलिक एसिड 
 और काबरेहाइड्रेट सहित वसा आदि से मिलने वाली 
 कैलोरी जीन पर निर्भर करती है। 
 इसके लिए जेनेटिक टैस्टिंग को अपनाया गया, 
 जिसके बाद तैयार किए गए डाइट चार्ट का असर 
 वजन कम करने की दिशा में सकारात्मक देखने को मिला है।
कैसे होती है जांच
इसके लिए मुंह के झाग का सैंपल लिया जाता है,

  जिसे बक्कल स्वाब भी कहते हैं। 
 डीएनए (डेक्सो राइबोन्यूक्लिक एसिड) में मौजूद 
 न्यूक्लॉयड्स की मदद से ऐसे हार्मोन और जीन की जांच की जाती है, 
 जो वसा, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन के साथ मिल कर 
 वजन बढ़ाने के लिए कारगर माने जाते हैं। 
जीन जांच से मिले परिणाम को एए एजी एजी 
 और जीजी जीनोटाइप के अनुसार तय किया गया। 
उदाहरण के लिए एडिपोनेक्टिन एक ऐसा हार्मोन है, 
जो वसा के साथ मिल कर कैलोरी पैदा करता है। 
एडिनोपेक्टिन हार्मोन के स्तर की जांच इस बात की दिशा 
तय कर सकती है कि अमुक व्यक्ति को कितनी वसा लेनी चाहिए। 
हाल में हुए एक अध्ययन के मुताबिक 15000 लोगों पर किए गए 
अध्ययन में  जिम में घंटों पसीना बहाने वाले 20 प्रतिशत लोगों का वजन जिम छोड़ने के दो से तीन महीने के अंदर बढ़ गया, 
जबकि 12 महीने जिम जाने वाले भी केवल 
पांच से छह किलो वजन ही कम कर पाए।
जीन के बारे में कुछ अहम जानकारी
- सीजी और जीजी पीपीएआर जीन जीनोटाइप का बायोमार्कर है, 

जो एक बार वजन घटने के बाद दोबारा वजन बढ़ने के लिए जिम्मेदार है।
- एफएबीपीटू जीन खाने से शरीर को मिलने वाली वसा को

  ग्रहण करने का कारक है, जो पेट की छोटी आंत में पाया जाता है। 
 यह वसा को नियंत्रित करता है, 
 इसलिए इसकी अधिक मात्रा वजन सामान्य रख सकती है।
- एजी और जीजी मार्कर एचडीएल या अच्छे कोलेस्ट्रॉल का मापक है। अमेरिकन जर्नल ऑफ फिजियोलॉजी द्वारा किए गए अध्ययन में पीपीएआरडीए परऑक्सीजॉन प्रोफाइलेक्टिव रिसेप्टर डेल्टा पॉलीमॉलिम कोलेस्ट्रॉल के स्तर के लिए कारक है। 

 यह अध्ययन द हेरिटेज फैमिली स्टडी के तहत किया गया है।
- ईडीएनवन जीन को तनाव व ब्लडप्रेशर बढ़ने के लिए जिम्मेदार माना गया है। इसे जीजी जीनोटाइप की श्रेणी में रखा गया है। 

 जीन की जांच के बाद कुछ ऐसी एक्सरसाइज बताई जाती हैं, 
 जो तनाव को नियंत्रित रखने में सहायक होती हैं।
- व्यायाम में आजकल एरोबिक शब्द का इस्तेमाल अधिक किया जा रहा है। इसका मतलब दिल से जुड़ी एक्सरसाइज से होता है। 

 डीएनए टैस्टिंग में वीओटूमैक्स स्तर के जरिए दिल की सुरक्षा की जांच की जाती है, जो बताती है कि दिल की मांसपेशियां 
 कितना वजन उठाने या व्यायाम के लिए सही हैं।
  पीपीएआरजीसीआईए वन जीन वीओटू मैक्स का पता लगाती है।
हृदय रोग और आघात
मोटापे के कारण मस्तिष्क और हृदय तक रक्त पहुंचाने वाली धमनियों में परत जमने लगती है, 

 जिससे एथरोसेलेरोसिस होने की आशंका 10 गुणा बढ़ जाती है। 
 यह परत टूट कर धमनी का मार्ग अवरुद्ध कर सकती है, 
 जो हृदयाघात का कारण होता है। 
 इसके अलावा मोटापे से हृदय पर दबाव पड़ता है, 
 जिससे हृदय काम करना बंद कर सकता है।
उच्च रक्तचाप
हमारा दिल पंपिंग के जरिए रक्त के पोषक तत्वों और ऑक्सीजन को शरीर के सभी अंगों और ऊतकों तक पहुंचाता है। 

 शरीर में अतिरिक्त वसा जमा होने के कारण रक्त की यह मात्रा बढ़ जाती है, जिससे धमनियों पर दबाव बढ़ जाता है।
  ऐसा होना हृदय रोगों, हृदयाघात और 
 किडनी फेल होने की आशंका को बढ़ा देता है।
मधुमेह
मोटापे के कारण शरीर द्वारा रक्त शर्करा के स्तर को 

 बनाए रखने के लिए इंसुलिन का इस्तेमाल करने की क्षमता 
 प्रभावित होती है। वहीं डायबिटीज हृदय रोगों, हृदय आघात,
  किडनी के रोग और अंधता कई रोगों का कारण हो सकती है। 
 इन दिनों बड़े स्तर पर बचपन में मोटापे से ग्रस्त रहे बच्चों में 
 बड़े होकर डायबिटीज के लक्षण देखने को मिल रहे हैं।  
जोड़ों का दर्द
जिस व्यक्ति का जितना वजन होगा, उतना ही जोड़ों पर अधिक दबाव पड़ेगा और घुटने, कूल्हे और पीठ  में ओस्टियोअर्थराइटिस होने का जोखिम बढ़ जाएगा। जोड़ प्रत्यारोपण जैसी महंगी सजर्री की मांग बढ़ने के कारणों में मोटापा एक बड़ी वजह है। 

 अधिक वजन के कारण कृत्रिम जोड़ भी सामान्य सीमा से 
 पहले काम करना बंद कर देते हैं।
सांस लेने में समस्या
मोटापे के कारण थोड़ा-सा शारीरिक श्रम करने पर ही 

 सांस फूलने लगती है। अचानक कुछ पल के लिए सांस रुकने के कारण श्वसन के जरिए शरीर में जाने वाली हवा बाधित होने लगती है 
 या जोर से खर्राटे आने लगते हैं। 
 श्वास बाधित होने से नींद में बाधा आती है और दिन के समय 
 आलस और उनींदापन बना रहता है।
कैंसर
मोटापे के शिकार लोगों में कैंसर होने की आशंका भी

  कई गुना बढ़ जाती है। इससे बड़ी आंत, घेघा, छाती, अग्नाशय, गर्भाशय,  पैनक्रियास, किडनी, गले और पित्ताशय का कैंसर 
 विकसित होने का जोखिम बढ़ जाता है।
मोटे लोगों में ग्रोथ अधिक होने के कारण ट्यूमर की आशंका भी 

 अधिक होती है।
मेटाबॉलिक सिंड्रोम
यानी कमर का घेरा बड़ा होना। अधिक वजन और मोटापे से प्रभावित एक तिहाई लोगों में छह चीजें-पेट के निचले हिस्से का मोटापा, 

 उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, इंसुलिन प्रतिरोध, 
 थक्का जमना और खून में जलन जैसी स्थितियां उत्पन्न होती हैं। 
 एक साथ इन सबके होने के कारण हृदय रोगों के होने की 
 आशंका बढ़ जाती है।

कैसे बनता है डाइट और वर्कआउट चार्ट
जेनेटिक जांच में उपरोक्त जीन के अलावा विटामिन ए, ई, बी, बी-12, फॉलिक एसिड, ओमेगा थ्री और बी-6 से मिलने वाले पोषण की मैपिंग की जाती है। उदाहरण के लिए बी-12, जिसे राइबोफेविन भी कहा जाता है, ऐसे लोगों के लिए कारगर है, जिनके जीन में एमटीएचएफआर का स्तर कम देखने को मिलता है। ऐसे व्यक्ति की डाइट में दूध, हरी सब्जियां, बीन्स और दूध से बनी चीजें शामिल की जा सकती हैं। इसी आधार पर वर्कआउट करने की सलाह दी जाती है, जिससे हार्मोन का स्तर नियंत्रित रखने में मदद मिलती है। मोटापा कम करने से पहले जीन की जांच एक बेहतर प्रयास हो सकता है। वजन कम करने के साथ ही यह भविष्य में होने वाली अन्य बीमारियों जैसे सीएसडी, दिल की धमनियों की बीमारी और डायबिटीज की पहचान के लिए भी कारगर है।      
डॉ. धनीराम बरूआ, जेनेटिक इंजीनियरिंग विशेषज्ञ, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ जेनेटिक इंजीनियरिंग
वजन कम करने से पहले जेनेटिक जांच या काउंसलिंग की जरूरत इसलिए देखी गई कि कई बार  डाइट और जिम का असर अलग-अलग लोगों पर अलग-अलग पड़ता है। ऐसे में सभी को एक तरह के वजन कम करने के कार्यक्रम में नहीं डाला जा सकता। अभी तक इसके बेहतर परिणाम देखे गए हैं।
डॉ. वीना अग्रवाल, आर एंड डी प्रमुख, वीएलसीसी
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